रुळग्यो मिनखपणों!
लड़े! आपसरी में,
भाई सैं भाई,
हाथां में लियां भुजाळी,
कोनी सुहावै,
अेक ने बीजै री,
तरक्की...
अपणेस...बळी, बुझी
अर भरगी
परसंग्यां मांय खटास...
मरग्यौ आंख्यां रौ पाणी,
गमग्या मिठड़ा बोल,
रैयग्यो
हिड़दै मांय नीरो जैर...
अर मूंडै देखी बातां
चौरावा, गळी कुंचड़्यां,
सड़क री
फुटपाथ पर
पड़्या मिनख...
खुले आभै तळै,
भोगै पीड़...
पीवै दरद नै,
नितगा
मुरदा रा स्हैर मांय...।