मुगती अजै अणूती अळघी

मुगत हूं म्हैं

मिल रैयी है आजादी

मनचायो करण री

भाखफाटै निसरूं

अधरातै बावड़ूं

नीं उठै आंगळ्यां

नीं आखडूं सवाला रै भाटा सूं

पैरूं मरजी रा गाभा

लाली लिपिस्टिक लगा'र

उडावू हांसी रा भतूळिया

फर्राटै चलावू कार

काळो चस्मो पैर्यां

घाणी रै बाळदियै री

गत बिसरा'र मनाऊं

स्त्री आजादी रो जसन

मानूं अैसान

मरदां रो

कै थे दीवी म्हनैं स्वतंत्रता

कळदारां पेटै

बिसराय दियो

म्हैं म्हारौ हूवणो

मुगती रो झुणझुणियो बजावती

भुंइजती फिरूं

कूड़-फरेब री

रास सूं बंध्योड़ी

लुळ-लुळ करूं सिलाम

थारै सबदां में

कै थे बख्सी म्हनैं

देह री आजादी

पण

चेतना अजै पड़ी अडाणै

मुगती अजै अणूती अळघी।

स्रोत
  • पोथी : अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद ,
  • सिरजक : मोनिका गौड़ ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन