सवाल नो जनोर

पसे पांके खकड़ावे ने

बकोर करे है,

वना विसारे के

ऐने पांका नी खकड़ाटन

सबद-भेदी तीर नो हेलण करवामएं

मदद करै।

अमणे थई सके के

ठा बन्दी ऐने अवेरी ले, सोड़ी दे

पण तारै

घेरा मूएं हूं वखेराणा जनोर नो

गावडू म्हेड़ाएंगा

तारे

बापड़ी आँखे उबी रई जाएं

जनोर सिसावा लागे

ने कोणे टेको नी आलेंगा।

केम के

गोहळो त्यारे थकी हूनो थई जाएंगा,

दाणां

शिकारी ने मूंठ में हवाया थका वेंगा

रूंकड़ा ना पानां पाड़तं थकी माजनो पाउँगा।

अेना थकी ठीक है के

आपड़ो दुख आपड़ाज गोहळा मां खोलो

आपड़ा आपड़ा माएंला मां जोवो

तते वात मळी जाए

के सवालज टळी जाए।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री कविता ,
  • सिरजक : वरदी चंद राव 'विचित्र' ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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