बा पुन्यूं को चांद!

अमावस सूं पैलां

घट रैयी ही

भोर की उजळी किरण!

सिंझ्या सूं पैलां

ढळ रैयी ही

घर की रखवाळण बा मालण!

अब घर सूं ओझल हो रैयी ही

बा बिरखा मांय बरसाती

दिवलै की ज्यांन बाती!

तेल कै खतम होवण सूं पैली ई,

बुझ रैयी ही

जिणनै खुद कै मिटण की कठै

अंधारो हुवण की फिकर ही!

बिना पथ-प्रदरसक कै

अग्यानी संतान कै

भटक जावण की फिकर थी।

देवता हुवै है इस्यो सुण्यो हो

उसकै रूप में, मैसूस कर्‌यो है

दिव्य रूपा, सगती सरूपा

बा तो फगत

म्हारी मां होय सकै ही!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : इन्दु तोदी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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