घणै चाव अर उमाव सूं
सनेव में रसीजियोड़ी, प्रेम में भीजियोड़ी
मिन्दर री नींव
छिंया-रूप धर’र आपरै लाडेसर
गुम्बद नै बकारता थकां पूछियौ-
“म्हैं थारी मां हूं”
आ सुण’र अकड़धजी गुम्बद
फेरूं की बेसी अकड़ग्यौ
अर अणूतौ गरब-गुमान सूं बोलियौ-
“थूं अर म्हारी मां – जा, जा
पैलां डौळ तो देख थारा
अै बिखर्योड़ा केस, लीर-लीर गाभा
अंधारै रै गरभ में लिपटियोड़ी
मांय’र मांय अंमूजती
अर धमचक धमीड़ा लेय’र जींवती
काळी कळूटी भूतणी
कठै सूं बणगी थूं म्हारी मां? जा, जा।
थनै मां कैवतै म्हनै सूग आवै
काळजौ घिरणा सूं भर जावै
जाणै, म्हारै रूपाळै डील माथै
अेक दाग लाग जावै।
अै प्रेम रा चौळका म्हनै मत सिखा
टुर परी, मूंढौ मत दिखा।
भाठै अर भारै नै?
साव सूगळवाड़ै नै
अंधारै रै गुंभार नै
म्हैं कियां अपणाऊं?
मरणजोगी डोकरी नै मां कैय’र किंयां बतलाऊ?
म्हैं! म्हैं पूजा रै इण थळ रौ आतमबळ हूं
चमचमाट करतै कळस वाळौ गुम्बद हूं
निरमळ हूं, सूरज री किरणां म्हनै चमकावै
बादळिया सिनान करावै
पंछीड़ा मीठा सुरां में आरती उतारै
धरती थुथकारै
आभौ निरखतौ रैवै म्हारै फुठरापै नै
घण्टियां रा निनाद गूंजै
भगत लोग म्हनै चाव सूं पूजै
हवा म्हारी धजा नै फरकावै
तिंवारां रै टांकड़ै
हैलीकोप्टर म्हारै माथै फूल बरसावै।
भागी पंछी म्हारै ऊपर बैठै है
भगवान री मूरत भी
म्हा सूं घणी हेठै है
म्हैं देवतावां रै माथै ऊपर
सै सूं ऊंचौ थळ हूं
रूप रूड़ौ हूं साव निरमळ हूं।
म्हारौ मान ग्रंथां में लिखीजै
कथावां में बांचीजै
अबै थूं ही बता-
किंयां मानलूं म्हैं थनै म्हारी मां।
आ बात सुण’र नींव नीं बोली
पण धीमै सी’क आपरौ अेक भाटो सिरकायौ
इतै में ही मिन्दर कांपियौ
गुम्बद डगमगायौ
चक्कर खाय’र कीं संभळियौ
फेर धीमै सी’क फुसफुसायौ
“औ अचाणचक भतूळियौ कठै सूं आयौ?”
आ सुण’र नींव बोली-
“थनै थारै रूप माथै गुमान है नीं काठौ
क्यूं, फेर सिरकावूं अेक भाटौ?
अबकी बार, जे म्हैं हिली
तौ थारै कस्ट नै कुण काटैला?
हेठै पड़ियौ धूड़ चाटैला
खण्ड-खण्ड हुय जावैला औ मिन्दर
अर चूर-चूर हुय जावैला थूं
अबै बोल
म्हैं थारी मां हूं क नीं हूं?
जनणी नव महीनां तांई पेट मैं राखै
जणै कोई बारै आवै
बीज आपरी जूण भुगतै
जद कठै ई जाय’र फूल-पत्ता लैरावै
घरे-घुमाळै रूंख माथै बैठ’र
पंछीड़ा हरखावै।
मां बिहूणी स्रिस्टि अर बीज बिहूणी कुदरत
कोनी टिक सकै
चावै दुनिया नै खरीद लेवौ
पण मां-पणौ कोनी बिक सकै।
कुमाणस टाबर!
थूं म्हानै कोनी ओळखै
तो लै, देणी’ज पड़ैला अबै थनै सजा!
ऊपर सूं ई गुम्बद गरळायौ,
“मां मां, म्हनै बचा!
म्हैं अणूतौ ई इतरायग्यौ हौ
बैम ठाह लागी,
मां बिना पूत कीरत बायरौ व्है
अंतपत मां ई तौ सायरौ हुवै?
म्हैं कपूत हूं पण हूं तौ थांरौ पूत
थारै हांचल रौ दूध
सौगन है थनै म्हारी,
रीस खाय’र पिलजै मती
कीं हुय जावै पण हिलजै मती।