म्हारी मायड़ भोम

म्हारे हिवड़े री ज्योति।

चम-चम करता धोरा चिळकै

सूं-सूं करती बायर बाजै

रूपाळी धरती यूं चमकै

आभै में बिजळी

म्हारी मायड़ भोम...।

कूड़ा कूड़ प्रकास अठै नीं

दान-दया सूं बारे कोई नीं

धरम धजा री रखवाली कर

परहित उमग्योड़ी

म्हारी मायड़ भोम...।

मीरां री भक्ति री साखी

करमवती री याद है राखी

कुंभा री गौरव गाथा नैं

थरपण आळी

म्हारी मायड़ भोम...।

मेवाड़ी, मेवाती, बागड़ी

मारवाड़ी अर ढूंढाड़ी

एक हाथ री पांच आंगळ्यां

हरां रा मोती

म्हारी मायड़ भोम

म्हारे हिवड़े री ज्योति।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : हरिदास हर्ष ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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