माथै में ठूंस मोकळी बातां

पढ’र घणी न्यारी पोथ्यां

इमत्यान करलै केई पास

चरित्र नी करणो बेकार!

री रैवै सगळां नैं आस

बुधी री सुधी राखतो

खराब हुई नीं सार

पवितरता जीवण री

भई नाव लागै ली पार

माथै में ठूंस लै मोकळी बात।

स्रोत
  • पोथी : हूं क तूं राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : नगेन्द्र नारायण किराडू ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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