आं गांव सूं दूरै
स्हैर मांय रैवता थकां
अतनी न्हं होवै
जतनी प्हैल्या होबो करै छी
गांव-घर रीत चिंता।
जद सूं गांव
घर-घर मांय पूगग्यो
बेतार मोबाइल
तद सूं मन करै जद
दिन में आठ बर
पूछल्यां छां
गांव-घर-गुवाड़ी रा समचार।
जीजी रो माथो भड़क र्यो होवै
या फैर
भाईजी रा गोडा रो दरद
महसूस कर सकै छा
मोबाइल पै बंतळ करती बखतां।
विज्ञान नै भलाई
बारूद री ढेरी पै धर दी होवै
मिनख री जिनगाणी
पण आं साठ बरसां मांय
आज हरेक री मुट्ठी मांय छै
दुनियां भर री लांबी-चौड़ी
सैकड़ां मैसेज।