गुमड़ै सो उपड़्यो

पीळी रेत रो मवाद भरीज'र

मोदीज्यो।

चाली बैरण आंधी

पकड़्या कंठ

दियो दाबो...

निकळग्यो मवाद

मिटग्यो गिरबो

बणग्यो धोरै रो मैदान।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जगदीशनाथ भादू 'प्रेम'
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