ऊंधी मत ना धार मानवी

मिनखपणो मत मार मानवी

हद छोडण में हाण घणी है

डूबै काळी धार मानवी

बेमतलब रो बैर बढ़ावै

तणातणी तकरार मानवी

नाजोगो बरताव निरखतां

उतरै नैणां खार मानवी

आँख आँख नैं अखरण लाग्यो

बूँदा रो व्यवहार मानवी

जे समदर री सब्र टूटगी

मचसी हाहाकार मानवी

स्रोत
  • सिरजक : गजादान चारण 'शक्तिसुत' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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