मिनख नाम है बळ रो, अपणायत रो
मिनख नाम है हिफाजत रो, मिनखपणै रो
समाज में भेड़िये दांई
पण आज मिनख—मिनख नीं रैया है
दुष्कर्मी, दुर्व्यसनी मिनख
आशा लतायां ज्यां बधरिया है
आज मिनख रो मानखो कठैई गमग्यो है
मिनख पर अब राक्षस हावी होर्या है
कैवै कै छोरयां रा छोटा कपड़ा देख'र भड़क जावै
पण दो साल री मासूम, नब्बै साल री डोकरी में
बींनै बेटी अर मां कोनी दिखै
बेटां ने भी सीखावां, राखणी लाज बेन—बेटी री
अचरज तो आ है कै शालीनता रो पाठ
आज भी खाली अेक पख नैं ही पढायो जार्यो है
आं मिनखां नैं जद ई काठी रीस आवै
कोझी गाळियां में भी बापड़ी लुगाइयां
नैं ही घिस'र लेर आवै।
क्यूंकै ईस्या मिनख भी जाणै है
कोई भी काम लुगाइयां बिना नीं हुय सकै
चायै बात हो हेत री या राड री
मूळ में तो लुगाईज ही हुवै है
लुगायां रै च्यारूं मेर ही गिरस्ती रो चक्को घूमै है
फेर भी औ मिनख क्यूं लुगाई रै अस्तित्व नैं ललकारै है।