सूना मरघट सा

सूना द्वार

चैन खोयो सो

दीखतो आज

हठीला सांप सा बैठ्या

द्वार-द्वार

जिण रै पाछै

कुळबुळाती लाम्बी कतार

धौळा सांपोला री

जिण री पिछाण करणी

ओखी व्है!

जिणरा सारा काज

मिल्या मांही आज

मिट्यो मानस रो चैन

गुजरया बैण

कलपता छह मासी रैण

मिनख!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सुरजीतसिंह भारतीय ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै