सांसा री सरगम मांय

छूटगी पाछी,

जिनगाणी री ठावी

ओळखाण,

अबै नीं बोलै

परभातां मांय कूकड़ा

अबै तो टनन-टनन

कर ऊंघती थकी

जगावै अलाराम घड़ियां।

अबै कठै नीं दीखै,

नीमड़ा रा दांतुन-कुरल्ला,

सिरावण मांय

छाछ-राबड़ी,

केळू रा मुकाम,

खजूर रा पंखां अर

घर-गुवाड़ी रा

माटी रा ठामड़ा...

माटी री जिंदगाणी

कंक्रीट मांय बदळगी है,

अर अबै

दुनिया राग गावै-

इण धरती पर

मिनख कठै?

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सत्यनारायण ‘सत्य’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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