सांसा री सरगम मांय
छूटगी पाछी,
जिनगाणी री ठावी
ओळखाण,
अबै नीं बोलै
परभातां मांय कूकड़ा
अबै तो टनन-टनन
कर ऊंघती थकी
जगावै अलाराम घड़ियां।
अबै कठै ई नीं दीखै,
नीमड़ा रा दांतुन-कुरल्ला,
सिरावण मांय
छाछ-राबड़ी,
केळू रा मुकाम,
खजूर रा पंखां अर
घर-गुवाड़ी रा
माटी रा ठामड़ा...
माटी री जिंदगाणी
कंक्रीट मांय बदळगी है,
अर अबै
आ दुनिया राग गावै-
इण धरती पर
मिनख कठै?