जतन राख ने बाँच्यां आछी,
बाकी लागै थोथी
माणस! थारी मिनख-जूंण है,
तीन पाठ री पोथी॥
पैल पाठ है बाळपणां रो,
दूजो पाठ जवानी।
तीजो पाठ बुढ़ापौ, जिणनै-
लिखबाळो है ज्ञानी॥
ओळ-ओळ में करमाखर रा,
है बींध्योड़ा मोती।
माणस! थारी मिनख-जूंण है,
तीन पाठ री पोथी॥
जिण ने पढ़बौ अठे जरूरी,
रोवौ, ठिठकौ, हरसौ।
जलम हुयौ थूं भरती जिणमें,
दुनियां एक मदरसौ॥
जिम्मेवारयां बणी गुरुजी,
लारै नाती गोती।
माणस! थारी मिनख जूंण है,
तीन पाठ री पोथी॥
गद्य'र कविता, नाटक क्रम सूं,
लगै बाँचता थोड़ी।
सबद-सबद रा अरथ घणा है,
ओळा गूढ़ लिख्योड़ी॥
चातर व्है ज्यो अरथ करें है,
बाकी लीपा-पोती।
माणस! थारी मिनख -जूंण है,
तीन पाठ री पोथी॥
अलंकार-रस सगळा इण में,
लारै प्रश्न घणां है।
ज्यांरा उत्तर ढूँढण सारू,
उळभ्या सबै जणां है।
सही पड़ूत्तर मिल्यौ वणीं नै,
जिण रे अन्तस ज्योती।
माणस! थारी मिनख-जूंण है
तीन पाठ री पोथी॥