म्हूं वागड़ी
हिंदी नी दीकरी, गुजराती नी भतरीजी
संस्कृत म्हारी ममाई, मालवी म्हारी माई
मेवाड़ी म्हारी बाई नै भीली म्हारी आई।
केटलं ने खोरामयं म्हूं रमी
लीली-पीरी वाडिये वेचे
म्हूं उपजी नै निपजी
माही ने काँठे डाकती-ठेकती
म्हूं दाडो-रातर वदी।
जारै-जारै म्हूं थाकी गई, मांदी पड़ी
हग-वालं अे म्हने हम्बारी।
मावजी म्हने खंम्बे तोकी
गवरी म्हने लाड़े गाई
गोविंद गुरु अे तोडा पेराव्या,
म्हूं भुरेटिय मयं छाई।
टगले-टगले हेणती-हाँफती
म्हूं चारे काँठे गांजी
टोपरा सरखी मीठी हूं
अेटले म्हूं हैया मयं नाची।
हूं कीडी जैवी नानीसी
पण म्हारे पोग नुं पेजणियू
ठेठ दिल्ली मअें वाजे
डोंगरे-डोंगरे दीवा बरे नै
मोठ-मोठ लाजे।
देसी गौळ नी मीठास अगाड़ी
खांड कारे टके?
आपडापण नुं हगपण होवे तौ
केनु अे कयं न्हें वटे।
फूल हैत्त अे धर् यं रई जयं
दरोकड़ी दुंदारा ने चढ़े।
म्हूं वागड़ी, नानीकीकडी
पण म्हूं धरु हूं विध्नहर्ता ने
लागु कैवी वाली
म्हूं वागड़ी कैवी रुपारी कैवी वाली।