उजड़तो घर

बिगड़तो जमारो

भूखां री चितकारां

नांनी नांनी कलियां रो बिलखतो

चांद सो मुखड़ो

कालो-स्या।

ताव अर तेजरो

उजड़ती जिनगांणी रो

भायलो बण आयो।

इणं सूं आगै

नित नुईं मौत

कुदरत रो कोप

हिवड़ै सूं पार सीली पून

अन्तराल मांय पाणी सो खून।

रात री नींद अर

दिन री रोटी

सासरै पुग्या।

आंख रो कोयो

दुजै कानी जोयो

पीसै रो दान नै

लाखां री मांग।

धरम रै नांव माथै

अणगिणत अत्याचार

पांणी ज्यूं पीसों बैवै

प्याला री मनवार मांय

कारां री चाल मांय

लाडीसा रै पोडर अर

गाबां मांय।

सांच रो बेचाण

झूठ रै हाथ

नीं कोई विरोध अर

नीं लड़ाई। सूं साथ

अकेली (सांच) पींजरा में बैठी

कुरलावै नै बिलमावै

हे म्हारा राजमी!

म्हूं देख्यो बो थूं भी देख॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : अजीतसिंह बन्धु ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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