म्हे जद छोटा हा

बात बात माथै

रूस जांवता,

मानता तो मानता

नींस कुटीज जांवता!

कई बार

कुटीज जांवता तो

रूस जांवता

मानता नीं

लाख मनायां ई!

ठाकुरजी रै भोग ताईं

आई मिठाई

चोर’र खांवता तो कुटीजता

मांगता तो भी कुटीजता..!

पत्थर रै भगवान रै

चढ्योड़ी मिठाई

भगवान तो नीं

हरमेस म्हे खांवता

लुक बांट’र

ठाह लाग्या

म्हे कुटीजता!

पत्थर री देवळी तो

सदां इकसार

हांसती रैंवती

मा खानीं अर म्हां खानीं!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम