अणूती पीड़
उजडग्यो सपनां रो नीड़
नीं उगै बंजर धरती पर अम्रत री पौध
संवेदनावां में फैलीजी पड़ी रै गरल री रेखा
जड़ समीकरण युग रा नीं म्हांनै ग्राह्य
निर्वासित हां म्हैं तो युग प्रक्रिया सूं
के वेरो कुण सी मंथरा री कुटिल मंत्रणा सूं
भोगा हां म्है निर्वासन
स्व सत्ता है, म्हारी
पण कढै म्हारी धरती
अपह्रत करली म्हारी अस्तित्व भौम नै
प्रेतां री दुर्निति
आंतकित रहवै है प्राण
भविस है अनिश्चिता
संशय ग्रस्त सो जीवन
विक्षोभ भर्यो सो मन
युग री भासा तो है फौलाद री
अर समीकरण अणु आयुधां रा
जीवन दर्शी चेतना है-कुण्ठित
डूवग्या है आकंठ विषाद में प्राण
नीं स्वीकारै पण मन पराजय
नीं त्यागां म्हैं म्हारी भौम
स्वाधीनता रै मुक्ति संघर्ष सारू
झूझां म्हैं प्रतिक्षण
जाणां हां बदलो लो भविस
समझैली आगत सदियां-अस्मिता री बात
विध्वंस रा प्रेतां सूं होवैली धरा मुक्त
अर पुलक जीला मीनख री ओख्यां में
आस्था रा दीप
बदल्यां बदलै जुग
लिख्यां लिखीज्ये जावै इतिहास
म्हैं भी रचां हां म्हारा छंद
अर करां हां सताब्दी रै इतिहास पर
म्हारै मंतव्यां रो अंकन
चाइवां- नूंवो सूर्योदय
चाइवां- मानव प्रतिमानां रो रक्षण
चाइवां- हर आंख में विकास रो हास
जीवन- रो अमृत अर नियति रा सकारी-बिम्ब
होवलो म्हारो सपनों
आगत सहस्त्राब्दि में सांचो
वो सुदूर आभा पर चमकै म्हारो विम्ब।