भोराभोर सुरजी
चुपचपातो आय'र
फळसै
मेल्ह देवै
म्हारै पांती रो दिन!
म्हूं
चौड़ो हो'र
चक ल्याऊं
उण दिन नै
बारणै पड़यै
अखबार दांई...
आठूं पौर
अठै सूं बठै डबकतो
उणनै कौर-कौर
तोड़-तोड़
गाळ देवूं, बाळ देवूं
भरोसै री भट्टी मांयI
बरसां सूं
म्हे दोनूं
नेम रा पक्का
कदेई नीं चूक्या
मेल्हणो अर चकणो
म्हारै पांती रो दिन!
म्हूं जाणूं
आखतो हुयोड़ो सूरज
चाणचकै
किस्यै ई दिन
पक्कायत तोड़ देवैला
आपरो नेम...
खाली हाथां
लटक्यै मूंडै
म्हनै आवणो पड़सी
बारणै सूं
चुपचपातो
अखबार मांय!
पण तो ई
सुरजी भायलै रै भरोसै
बेफिकरी मांय
म्हूं मारूं पदड़का
बिना उण दिन नै
चेतो राख्यांI
काळजो तो देखो
म्हारो!