अेक

आस रो डूंगर है
म्हारो गांव
इण रा भाखर
टूटै नीं किणीं सूं
ईसर-परमेसर
परकत खसै तोड़ण
जुगां सूं
म्हारै गांव में।

अठै 
अटल ऊभी है
रेत रै कण-कण
जीया-जंत में
उतरती-पळती
पीढी दर पीढी
भरोसो बंधावती
अमर है आस
म्हारै गांव में!



दो

पाणीं रो टोटो
पण
प्रीत रा पीवै
भर-भर प्याला
म्हारो गांव!

अठै मिटै
जुगां री तिरस

जणांई भंवै मिरग
थळ री देह
सोधता अदीठ जळ
जिण नै पीयां
मिलै मुगती
भव बंधन सूं
म्हारै गांव में!


तीन

पाणीं पीयां नीं
पाणी देख-देख 
होवै हर्या
जीव-जिनावर
माणस-रूंखड़ा
पान-फूस-घास
म्हारै गांव में!

बिरखा री आस
अटल पाळती
खेवै जड़ां पताळ
जूनी खेजड़ी
बोदी सीवण 
उतरै धुर ऊंडी
ऊंडो जळ पीवण
म्हारै गांव में!


च्यार

बादळ बरसो
चावै मत ना बरसो
अटल पण चौवै
मुरधर री रगां
बण धंवर
जीव-जंत री आंख्यां
बण आंसूड़ा
म्हारै गांव में।

बिरखा सूं बेसी
पाळै है आस
अदीठ बादळ री
गावै तेजा-मोरिया
धोकै आस माता
अबकै बरसी
म्हारै गांव में।


पांच

पाणीं री जाणैं
आण अर कांण
थळ रै जळ समेत
मिनख रै माजणैं तकात
परखै पाणीं
म्हारै गांव में।

अळगो आंतरो
चावै पाणीं पीवण रो
राखै पण सांकड़ै
आण रो पाणीं 
जिण सारू कटाया
बडेरां सीस अलेखूं
तिरस पीवी
राख्यो पण पाणीं
पाणीं राखण आंख रो
रगत सूं सींची धरा
आज भी पाळै बा हूंस
म्हारो गांव!
स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम