कुंड रै गंदळे पाणी मैं

काई सो ऊग'र

पळींडै मैं रीत्यै घड़ै

भरीज जावै काळ।

काळ

मारी उदास आंख्यां निकळ

बाई रा सुपना करै आल्ला

भळे बापू री मनचींती

तणीं माथै टांग देवै सूकण।

म्हारी राठी गावड़ी रै बोबां

दूध-दई अर चूंटियै री

हांडी नै निजर लगाय

टाबर-टोळी री तोतली हांसी

खोस लेवै काळ।

काळ

बाजरी रै सिट्टां सूं झर

धान मैं घुस्सै

चूस लेवै गुवारफळी रो रस

मतीरैरी मिठास अर पाणीं।

रीत्या पड़्या ठाणां

भाई रै कारी लाग्योड़ै पजामै

आंगणै मुरझाई तुळछां सूं

गोखै काळ।

काळ

बांध, नैर, क्यारी अर पाळ

पगडांड्यां सूं निसरै

खिंडा देवै चौगड़दै

नाउम्मीदी रा सरणाटा

खेत-खोड़ सूं लेय’र

दादो जी रै हुक्के ताई।

खेत सूं निसर

म्हारी रगां मैं बगै

छाती मैं बळबळतो

मुंडै माथै ऊग जावै काळ।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : पृथ्वी परिहार ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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