म्हारी छात

म्हां माथै

पड़ण नै त्यार है

छात रा लेवड़ा तो

कद रा

झड़ण नै त्यार है

म्हैं पण

उणी छात तळे रात भर सोया करूं।

म्हनै ठाह है

म्हारो देस नीं, पाड़ोसी देस भी

राखै परमाणूं बम्ब

जकां रा धमीड़

म्हनै औढ़ा देस्सी

कदैई अचाणचक धूळ रो खफ़ण।

म्हैं

गांधी रै देस रो

सोमनाथ रै पंडां ज्यूं

सोऊं आखी रात

बेखटकै सोचतो थको कै

कदैई इयां थोड़ी होया करै।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : नरेश मोहन ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन