कठै कींकर बैठणो

कठै बोलणो

कद खाणो

किण परेंडे रो पाणी पीवणौ

नीं जाणे है म्हारे गांव रा लोग

मुदरो मुदरो मुळकणो तो

वे जाणे ई'ज नीं

के तो वे बाको फाड़ हंसे

के वे अणमणाई ओढ’र

टगर-टगर हाथ रो काम

करता रैवे

किस्या अणूंता है

म्हारै गांव रा लोग?

वे बस में

किणी नै भी आपरै कनै

बिठाण लेवे

ने कठै भी गा लेवे निसंक-

पैदल चालता थकां

सवारी माथै चढ्यौड़ा

घर-गुवाडी में हरत-फरता

खेत री रुखाळी करता

बीज ऊरतां

ऊमरा करतां

वां रै सारूं गीत-गाळ रो

कोई टेम नीं

कोई नेम नीं

वे अणजाण मिनख सूं भी

कीं नीं छिपावे

रेल में भिख्यारी नै

वे देवे सबसूं पेलां

दोपेरी करतां गाय-गंडक रो भाग

काढ़णो कदेई नीं भूलै

बेन रै मायरो ले जावै

तो बेन सूं पेलां

उणरै गांव रै सींवाड़े

ऊभी खेजड़ी नै चूनड़ ओढावणौ नीं भूलै

घणा भोळा है

म्हारै गांव रा लोग।

वे सब में विसवास करै-

मदरसां में भणाई चाल री है

दफ्तरां में काम-काज व्है रयौ है

कारखानां में उत्पादन रौ

धोरो बह रयौ है

वे फकत बिसास ई’ज कर सकै

अणविसास रो बीज

वारै हिये री जमीं में

पांगरै नीं

वे बिना बात झगड़ो नीं करै

'क्यू' में आगे आवण सारूं

उतावळ वां नै भी है

कितरा काम धंधा टेमसर

निबटावण री

पण वे छनीक उड़ीक सूं

अमूझै कोनीं

वे कह्या करै-

व्हैवा रा काम तो व्हैला ई’ज

दो घड़ी मोड़ा बेगा।

कितरा मूरख है

म्हारै गांव रा लोग?

सिंघासण माथै

कोई भी राजा बैठे

दरबारा जारी करै

किस्यो भी हुकुमनामो

वे नचींत व्हे'र कह्या करे-

नुंवो राजा गादी चढै तो

खरच खातो तो व्हेई है

राजा रो खरच

परजा माथै।

वे चुपचाप भरै है

हर नुंवो टैक्स

जे चूक जावे तो

सूद सेती भरै

वे मानै है'क

गाडर माथै ऊन

कोई स्याणो नीं छोड़्या करै है

कितरा डरपोक है

म्हारै गांव रा लोग?

वे झण्डा री जगां

हळ री मूठ पकडै

नारा री जगां नारायण गावै

जलूस सभावां कीधां बिनां

वां सूं बण पड़ै जिकौ

छानैक सी कर दियां करै

वे इमानत नै इमानत मानै

पूजा अर इबादत में

कीं फेर-फरक नीं वां री निजरां में

वरत’र रोजा एक जाणै वे

वे वज्ञापन नीं कढावे छापा में

सुभकामनावां रा

संवेदनावां रा

उद्घाटणां रा

पण वे सब कारज करै सदियां सूं

एक 'राम-राम सा' रै उचार में।

कितरा लारै हाल रया है

म्हारै गांव रा लोग

आगे बढ़ण री होड में

आज री जिनगाणी री दौड़ में?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण: भगवती लाल व्यास ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : कुंदन माली ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham