सिद्धस्री जोग लिखी
मुकाम दिल्ली सूं ढाणी 'धाणी' में
गेलसप्पा चिल्ली में मिले।
अपरंच म्हैं अठै राजी-खुसी
बठै भी थूं सावळ होसी
आगै समाचार अे है के
धळधाणी रज-धाणी
नवी दिल्ली पूग्यां पछै
जनपथ सूं राजपथ माथै टेहलूं हूं
संसद अर सचिवालय रै
पूठ लारै देखूं हूं
म्हारौ भारत, थारौ भारत बस।
दिल्लो, आपांरै भारत रौ काळजौ !
म्हैं रोवू हूं के हंसूं हूं
ठाह नी पड़ रैयी है।
अठै दो दिल्लियां है आ जांण लीजै
अेक गरीब री, अेक अमीर री।
अेक नवी अर अेक पुराणी।
अठै बेखाळ चालै है
अेवड़ मिनखां रौ,
जणा-जणा गडरिया
बगत गाळ'र आं रा कांमण देखू हूं,
म्हारी समझ सूं बारै है,
राज-काज
सावळ चालै है जेबां में नोट घाल्यां।
दफ्तरां मांय रामराज है अर
कामकाज ?
बौ भी निकां चालै फाइलां में
जठै सड़कां माथै पांणी बिकै
बठै मिनखां रौ कोई मोल ?
कीड़ी हांस, तीतर खावै
आपां रौ कांई जावै है?
म्हनै तो थांरी ओळं घणी आवै है
हाल म्हैं की प्रगति कोनी करी हूं....
पण हां, आपां रौ देस
घणो प्रगति कीनी है
आ बात म्हनै अखबारां सूं ठाह पड़ी है....
पछवेता औ सरकारी-गैर सरकारी आंकड़ा है।
म्हैं मान रैयो हूं, आखो देस मान रैयौ है
थूं भी मान लीजै!
बीतां सू गांव में थूं लांठौ,
पण थारे सूं भी अठ लांठा घणाई
थारी इज कमी अठ अखरै है,
सेखचिल्लियां री अठै कमी कांई
आईजै, दिल्ली आपां रै भारत रौ काळजी।
उडीकूं हूँ
राम-राम॥