कई लोग

पगां सूं पांगळा पैदा हुवै

कई कानां सूं बहरा जबान सूं गूंगा

तौ कई आंख्यां सूं आंधा पैदा हुवै

मांदा पैदा हुवै

जलम सूं कई लोग

अर आपरै रोग रौ

सतपड़ौ सेवता

अणूंती पीड़ा नै खेवता

काट देवै आखी ऊमर

दाट लेवै मन मसोस

आपरी आंख्यां सूं झरतौ अफसोस

दोस

किणी नै नीं देवै आभिसाप रौ

लारलै जलमां रै पार रौ

फळ मान लेवै।

भोगणौ मौत री ज्यूं अटल मान लेवै।

जी लेवै वै लोग क्यूंके

वां कनै काट लेवण रा

कारण हुवै

हाथ, पग, आंख, कान जीभ जिसी

मालक री दियोड़ी नेमतां मांय सूं

एक नै छोड़

बाकी री

मन दाट लेवण रौ कारण हुवै।

पण म्हैं

कांई करूं

आपरौ चहेतौ कवी

जिकौ पगां सूं पांगळौ

कानां सूं बहरौ

जबान सूं गूंगौ

अर साथै

आंख्यां सूं आंधौ पैदा हुयौ-

निरोग पैदा हुयौ हौ

भलांई नै डील सूं,

पण मन सूं मांदो पेदा हुयौ हौ।

पांगळो हूं, म्हैं

म्हारै पेट रै हेठ

पगां रौ एक लुंज है

जिकौ फकत पग हुवण रौ भरम पैदा करै।

बहरों हूं, म्हैं

दीसत में भलांई नै म्हारै कान है

पण बेज्यान है

कोई ऊभसूक हुयोड़ै ठूंठ मांय

कोचरी रै कोटर सा।

म्हारै जबान है,

पण जबान नईं

जबान री जिग्यां मांस रौ अेक लोथड़ो है

जिकै नै म्हैं जे

कदेई उथळण री कोसीस करूं

तो फकत एक बोल्याळ नीसरै है

गूं गूं।

म्हारै आंख्यां नईं

आंख्यां री जिग्यां दोय खाडा है

जिकां मांय काच रा दोय कचरोळिया 'फिट' है

सांस आवै है

जावै है, लुहार री धूंकणी दांई

फरक फकत इत्तो है के वा मुरदा है

अर म्हारै सरीर

जीवतै मांस रौ एक गिलगलो भिट्ठ है।

जेकर नईं होवतो पांगळो

होवता म्हारै पेट रै हैठ-

भी पग

तो आप कांई जांणो हो

के ठग

जिका कणांई म्हनै सिरकार बण’र

कणांई परम्परा बण’र

कणांई रिवाज बण’र

लूटै है

घूटै है

म्हारै रगत री अेक अेक घूंट

म्हैं आरै सैंठी-सी ओकर लगा

देवतो

धूळ मांय नीं मिला देवतो

आंरी सूगली मनस्यावां रा षडयंत्र

तार तार नीं कर देवतो

आंरौ तंत्र

आंरी तिकड़म

आंरा मंत्र उच्चारण रा ढोंग।

एक ठुड्डै सूं नीं तोड़ नांखतो

आं आदमखोर भेड़ियां रा कंचळा

मिरचां सा नीं मसळ देवतो

आंरा नख

के मिनख रौ भख लेवण सूं

आजिज जावता

का पाछै म्हांनै खा जावता।

पांगळो हूं, म्हैं

ईं भेड़या-गिरोह रै बिचाळै

बंध्योड़ै बकरियै सो हूं

पांगळो हूं, म्हैं

के म्हांनै म्हारै सांम्ही ऊभै दुसमण रै

फिरतै काळजै रौ ठा है

फेर भी वार सूं चूकूं हूं।

बहरो हूं, म्हैं-

नींतर बसतै जगत री

रिणरोही

अर ईं सूरज रै घुप्प अंधारै माथै

हुंवता बलात्कार री चिरळी

म्हारै कानां मांय

अवसर गूंजती

सूझती कोई जुगत

मारतो कोई बाण

ताण’र दसरथ दांईं

अर बींध देवतो 'सरवण' री जिग्यां

कोई 'रावण'।

बोळो हूं, म्हैं-

के नीं म्हनै बमां रा धमका सुणीजै

नीं अणमोल टाबरां री किलकार

जुद्धां री आग मांय बळतै

मिनख री चिराळी

नीं अबळा पुकार

नींतर 'खुर्रमशहर'-

अर 'बसरा' रै बिचाळै बिळली

ईं आग माथै

बळतै कोई जिलफ नै

जे बचा तो सकै हो साथै।

म्हैं गूंगौ हूं

कोई अणघड़ भाठै री भांत

के कौरे कागद ऊपर

बैठ्यौ लीक-लिकोळिया काढूं हूं

देवूं हूं

लोगां नै कूड़ रा काठा विसवास

अर आंकां रै सहारै

मन री बात मांडूं हूं।

म्हारै जबान नीं है

नींतर म्हैं सिंघ री भांत दहाड़तौत कोई कविता

अर फाड़ देवतौ लोगां रै

कानां रा पड़दा

आपरै बोल्याळ सूं-

गुंजा देवतौ आखी बणराय

के म्हारी कविता

म्हारी कलम बच जावती

अर लोगां रै हिवड़ै मांय

सबद-सबद रच जावती।

म्हैं आंधौ हूं

निरंध

के होवती आंख्यां

एक सफेद रोसनी री तलास मांय

कणांई परंपरा री लाठी पकड़

डंग-डंग आखड़ूं

तौ कणांई-

इतिहास रौ कांधौ झाल’र

पग-पग पड़तो फिरूं।

म्हैं आंधौं हूं

आजलम

नीं म्हने पगां माथै झळती

दीसै है

नीं डूंगर माथै बळती

म्हैं आंधौ हूं-अधीन

के म्हांने नीं राह दीसै है

बणराय।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम