म्हैं हर बगत इज
घुटती सी रेवीं
क्यूंकि म्हैं लुगाई हूँ
कुण जाणै है
मेरली भीतरली बातां
किती तरसूं म्हैं
थारौ मोह पाण खातर
थै सागै हो’र बी
म्हारै सागै कोनी हो
बिना मोह रे थारे सागै
रात रो बगत
डरावणो लागै
थै तो मिनख हो
आदत है थारी
खेलण री
फेर चाहे
सुपना होवै
का शरीर
काईं फर्क पडै थानै
जद थारो मिनखपणो मरग्यो
अर म्हैं सोच ल्यूं
लास नै
कीड़ा ई तो खावै है