बाळपणै में क्रिसन री मूरत देख’र
तूं रीझी तो भला रीझी
नैनकियै हाथां सूं कानूड़ै नै
कोळिया दीना तो भला दीना
मीरां!
कर धारण कीनौड़ी बंसी
मुगट पर मोरपंख
उर वैजंती माळा
वक्र कान्है री मूरत
थारै हियै बसी तो भला बसी।
कुण जांणतौ कै..
टाबरपणै में रम्योड़ी थारी अै रम्मतां
जीवण री रम्मत बण जासी
कुण जांणतौ कै..
तूं आखी जूंण
कान्है सारू जीवसी।
हे मेड़तणी!
घणै लाडां-कोडां
तूं दादोसा रै खोळै जी भर नै खेली
प्रोळां रै मांयनै घणै हेत सूं ऊछळी
आंगण मांयनै मन-मरजी री करी।
कांई ठाह?
किण दिन तोरण बांधीज्यौ
किण दिन लीना फेरा च्यार
किण दिन लीनी सीख
किण दिन सिधाई सासरै?
वखत रै परियांण
ओळूं रै आंगणै
थनै घिर-घिर चेतै आवै।
थूं आयगी कुड़की-गढ़ सूं
जग चावै चित्तौड़
तूं भला ई बसी मोटै गढ़-मै’लां
पण, थारौ मन
अठै नीं बसियौ तो नीं बसियौ।
त्रसित चातक बण थारौ मन
कान्है में इज बसियौ
थन्नै नीं भाया
मै’ल-माळिया
नीं भायी करवाळां बिचै उठती चीख
नीं भायी रूड़ी रीत
थारौ मन तो ब्रजलाल माथै इज रीझियौ।
मीरां!
थैं तांणी तंदूरै तार
आतम नै झणकार
किणी रै रोक्यै नीं रुकी
किणी आफत सूं नीं झुकी।
रांणाजी रीस कीनी
थारै सारू काळिंदर मेलियौ
पण, उणनै कांई ठाह कै
जिण काळियै नाग नै
जमना री उच्छळ तरंगां में नाथियौ
उण रै रैवतां कांई करै सकै कोई?
रांणाजी विष रा प्याला मेलिया
तूं डग-डग डकारिया
अंकै ई नीं डरी
हे मेड़तणी!
कितांई घातां-प्रतिघातां विचै
नीं हारी तो नीं हारी।
मिनख केवतां रैया कै
मीरां! राज री मरजादा नीं मांनै
रजवट री रीत नीं राखै
पण, तूं अडग रैयी हिमाळै सरीखी
सतवट नै सींचण सारू।
गढ़ां में जावण सारू तो
आखी दुनिया ताफड़ा तोड़ै
राजसी-वैभव किण नै नीं ललचावै?
पण, मीरां!
तूं गढ़ छोड़ बा’रै आयगी
वैभव नै छोड़ त्याग रै मारग बूवी।
तूं पूगी
पग-उरभाणी विंद्रावन
निहारती रैयी करील-कुंज
जमना-तट
बंसी-धुन
गोपी-ग्वाळ
हेरती रैयी कान्है नै
वो नीं लाधौ तो नीं लाधौ।
उण बखत
तूं सोचियौ व्हैला कै
कठैई लुकियौ व्हैला कान्ह
किणी कदंब री डाळ
कै मोटै खूंटै री ओट
कै पासांण रै लारै
स्यात लुकमींचणी रमण री तेवड़ी व्हैला
पण, थारै कानूड़ै
कूकारिया करिया ई
हेलौ नीं दीनौ तो नीं दीनौ।
मीरां!
तूं गावती रैयी
साकळै सूं आथण तांई
अर डूबती रैयी आतम-आणंद में
देखती रैयी तारा-चांद
ढळती मांझळ रात
थारै कंठ सूं हमेशा
औ इज निकळ्यौ..
‘म्हारौ तो गिरधर गोपाल, दूसरौ न कोई।’
मीरां!
इण जुग रै मांय
थारै जिसी तो तूं इज हुवी
जकौ..
बाळपणै में अणजाणै में
जिणनै रीझावण रा जाझा जतन कीना
आखी ऊमर उणरै सारू इज जीवी।
जद कठैई गोपाळ नीं मिल्यौ
तूं द्वारका पूगी
हां! अठै इज थारौ गायां रौ ग्वाळ
द्वारकाधीश बाजियौ
त्रिलोकी रौ नाथ मानीज्यौ।
मीरां!
तूं उदधि रै तट नै नैण-निहारियौ
अठै ई जोयौ
कै वौ कठै अलोपियौ?
छैवट उणरै मिंदर रै मांय
मूरत रै सांमी
पगां रै घूघरिया बांध नाची
कुण जांणतौ कै..
इंया नाचतां-नाचतां ई
तूं ईं मूरत में समा जासी
श्याम सूं मिल जासी।
थांरी जीवण री साधना
सांची फळी
जिणसूं वैराग में राग री
नवी कळियां खिली।
मेड़तणी!
जेड़ै तांई रैसी स्रस्टि रौ रूपक रूप
सुणीजसी थारी तंदूरी राग
जद तक गावसी हरजस कोई
थांरा पद आपै ई कंठां में आसी
जद कोई जासी क्रिसन रै मिंदर
थांरौ समरपण सांप्रत निगै आसी।