जद मैं
आठ बरस रो थो,
घणा हरख सूं जावतो
मां सूं एक पायली लेर,
मेळा में।
मेळो तो मेळो हो
काई चीज़ नी थी उठै..
रमेकडा,
मिठाई,
हिंडा,
घोड़ा,
घणा नी थोड़ा,
सगळी बाता थी।
सगळो रस
देख अर
पुरो कर लेतो।
मौत रे कुएं
सूं मोटरसेकिल री
आवाज
सुन लेतो
भेतो भेतो।
राजी मन सूं पाछा
आ जाता।
ज्यों खुद आता
व्यू पायली भी
सागै ले आता
और
लेता भी
कांई कांई
अेक पायली सूं।
आज फेरूं
मेळै में गियो,
बो ही हरख हुयो।
सगळी चीजा आज भी थी,
पर नी थी एक चीज़
म्यारो मन।
आज क्यो नी लियो की
ओ सोचता थकां
पाछो घर आयो,
ठाडो पाणी पियो,
भरीजियो हियो,
अर्
आज लाग्यो कि
मेळो तो बो इज हो
पर
मैं अब टाबर नी रियो
मैं अब टाबर नी रियो।