देह होमियां

परजाळीजै जोत

रगत होमियां

पूरण होवै जज्ञ

बैर रौ अंस लेय

जलमै पूत

बगत

पोळपात बण

बांचै आखर जस रा,

जूण रौ सार

अगनी

कै खांडै री धार,

उण जुग रा बजर किंवाड़

थू मोरपांख सू खोलिया

नीं होवती थूं

तौ

बांझ होवती हंरेक कूंख

नीं होवती थूं

तौ

अडोळी दीसती हरेक आस

होयां थारै अलोप

कुण जोड़तौ

राग अर सुर रौ सांधौ

थारै पगां लाग

घूघरा पूजीजिया

थारै ठुमकां

होई नाच रै निछरावळां,

थूं ऊगाई सौरम

भंवरा रा डर भांगियां

थारै रंग

रंगियां सातूं रंग

थारै इकतारै

अडांणै बैठी रागणी

बगत नै नचावणियौ

थारै नखरां नाचियौ

थारै औगुण री

कैड़ी बांण

कुदरत रै कण—कण

घुळगी प्रीत।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी काव्य संग्रह (कक्षा-12) ,
  • सिरजक : अर्जुन देव चारण
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