वागड़ नी आ पवित्तर धरती,
निकलंक मावजी जनमिया।
द्वापौर युग नी अधूरी लीला,
पूरवा बेणकै परगटिया।
रतन, साम, मेघ, प्रेमसागर,
चार-चार चौपड़ा लखिया।
गीता-ज्ञान नो गुटको लखियो,
वागड़ गौरव ज्ञान रचिया।
पोताने तो घेलौ कै पण,
मावजी डाई वात करै।
आड़ी अवळी भासा मंय,
आगळ वाणी वात लखै।
हमजु ग्यानी तारी वाणी,
करै जतन तारै ज हमजै।
हमजी लोकं ने हमजावे,
तारो जै-जैकार करै।
सौ-ए-आनी हांची पड़ी हैं,
वरसो पुठै वातै तारी
याद करूं आगळ वाणीनै,
आबूदरे डुबकी मारी।
परिये पाणी वेचाहै क्यू'तु,
बाटले पाणी बन्द थियू।
दौरिये-दौरिये डूंगरी माथै,
दीवा नु अजवारू थियू।
न्यात जात नो भेद मटेगा,
मावजी तो एम् कहैतो'तो।
मेळ वध्यो पण वोट-ए वाटयां,
देस परेम खुंटिये टेर्यो।
बळद नो भार हांचेज घटियों,
टैक्टर खैतरे-खैतरे पूग्यु।
खेडूत बैठो मसीन भरुसे,
गौवंस सत्यानास कर्यू।
दरिया नु तो खारु पाणी,
पीवा हरकु मैंठू थाहै।
मनकं मंय खार भरणों,
मौरा मंय खंजर घोपै।
विस्वा एक बीजा ना मटिया,
नदिए भी पाणी घटिया।
ऊंस अतँ ई नैसे पड़ियं,
नेसं गादी पर सडियं।
परबत गळी नै पाणी थासे,
देक हिमाळा भी गरिया।
क्रेसर, गट्टी, पाणा खोतरी,
पौला डूंगरा अमे करिया।
वउ तो बैठी राणी बणीने,
हाउ ने हैड़ा भारै है।
कुटुम्ब नी मरजादे भूली,
कोरट सड़ीनै तावै है।
बाप-बेटी नो पवित्तर रिस्तो,
कैक अखबार ने रंगे है।
बेटिये कुख मंय मारीने,
नवराते कन्या पूजे हैं।
पाप वैटी ने थाकी धरती,
तारी वाणी नो भरुसो है।
उगमणे बत्रिस हाथवाळो,
नक्की अवतार लेवो है।