झड़ै है फूल बागां मां, हर्यौ है रूंख परबत को।
कदैं गरमी कदैं बरखा, अजब है खेल कुदरत को॥
जठां सूं रात मंह अमरत, सरद का चांद सूं बरस्यौ।
लगी चौपाल पै धूणी, तप्या बूढा हियौ हरस्यौ॥
रजाई मंह घुस्या सगळा, सबां कै आवटौ होग्यौ।
अस्यौ तौ सी पड़ै पोटां, अस्या मंह मावटौ होग्यौ॥
जमी लागै मुळकती सी, जठा सूं रेलण्या होई।
धरा को रूप नत निखरै, जठा सूं साख नै बोई॥
हर्या है खेत फसलां सूं, करै मोट्यार रखवाळी।
रखै है लार खेतां पै, कनै नत कामळी काळी॥
चली है सासरै जमनी, जंवाई हांवटौ होग्यौ।
अस्यौ तौ सी पड़ै पोटां, अस्या मंह मावटौ होग्यौ॥
कठै तौ ढोल को ढमकौ, कठीनै तान बाजां की।
बंदोरा बींदण्या खावै, बंदोरी बींद-राजा की॥
कठीनै गीत मंह बनड़ी, बना अर मायरौ गूंजै।
बरातां चढ़ गयी तोरण, पगां नै दूध धो, पूजै॥
घणां कै पड़ गया फेरा, घणां कै न्यावटौ होग्यौ।
अस्यौ तौ सी पड़ै पोटां, अस्या मंह मावटौ होग्यौ॥
परूसै आज पंतग मंह, खड़ा मोट्यार लाखीणां।
सजी सी गोरड़् यां जीमैं, जणां का घूंघटा झीणां॥
हुवैला चूर सब चक्क्यां, हिया मंह है हरख ऊंडौ।
जळैबी सूं घणौ मीठौ, हुयौ है चांद सो मूंडौ॥
पड़ै सब टूट लाडू पै, घणां को गावटौ होग्यौ।
अस्यौ तौ सी पड़ै पोटां, अस्या मंह मावटौ होग्यौ॥