गांव री गुवाड़ बिचाळै

कुवै री चौकी सूं,

घड़लो उठावतीं,

बिण देख्यो

म्हारै साम्ही

मुळक अर मौन रै बिचाळै

थरथरांवता होठां सूं,

अर म्हूं खड़्यो रैयो

चितबगनो सो,

बीं रै साम्ही देखतो,

बीं मूळक अर मौन रै बिचाळै तो है

बा भासा,

जिण रो नाम जीवन है,

जिण रो नाम प्रेम है,

मौन खुद सार्वभौम भासा है,

जिणनै जरूरत नीं है,

सबदां री,

बोलियां री।

जिका समझ सकै इण भासा नै

बै खड़्या रैवै सइकां सूं,

इण दुनिया सूं अणजाण

एक ही जिग्यां,

बां रै खातिर

हरियाळो मैदान अनै थार रो रेगिस्तान

दोनूं एक जेड़ा हो ज्यावै।

जद मिलै इण मौन री भासा नै

समझणवाळा दो मिनख,

तो बैमानी हो ज्यावै वरतमान, भविस अनै भूत,

फगत उणा रो प्रेम रै ज्यावै

उण थार री भोम माथै,

थार रो प्रेम है

अमर प्रेम,

म्हूं बैगो सो टुरनो चावूं

उण कुवै सूं,

नजरां फेर गै,

पण टूर नीं सक्यो

सायत

बीं मौन अर मूळक री भासा

म्हारो जीवण है

म्हारै थार जेड़ै जीवन रै मुजब...

स्रोत
  • सिरजक : रामकुमार भाम्भू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै