कांई है थारो

जिको करै इत्तो गुमेज

अेक माटी रो ढगळ थूं

अेक ठोकर में

खिंड’र रळ जासी

माटी मांय

नीं रैवै थारो आपो।

थारी आतमा पर लाग्योड़ो खांपो

नीं सीं सकैला थूं

अर सांस रै सागै

उधड़ रैयो है

थारै मिनखपणै रो खोळियो

फेरूं भी इत्तो गुमेज?

स्रोत
  • पोथी : मन रो सरणाटो ,
  • सिरजक : इरशाद अज़ीज़ ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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