कितरौ मूंघौ कितरौ सूंघौ, इण माटी रो मोल

जाण सकै नीं जाण्यां पै’ली, हियै ताकड़ी तोल।

जनम-जनम सूं सांसां सागै, उळझी जीवण डोर

दुख सुख रा मिजमान पधारै, नैणां उठै हिलोर

छाया पकड़ै हाथ आवै, प्रीत करै रिमझोळ

कितरौ मूंघौ कितरौ सूंघौ इण माटी रो मोल।

बदळ बदळ नैं छळतौ जावै, ममता रो सिणगार

रूप छांवळी निरखै पल पल, सुपना रो संसार

आगै पाछै मुड मुड झांकै, चिता सजै अणमोल

कितरौ मूंघौ कितरौ सूंघौ, इण माटी रो मोल।

जीवण माटी सोनो माटी, सै माटी रो खेल

रंग रूप माटी री किस्मत, माटी रो है मेल

दरपण माटी छाया माटी कोरौ पीतळ झोळ

कितरौ मूंघौ कितरौ सूंघौ, इण माटी रो मोल।

जुग जुग सूं माटी मांगै, जीवण रो इधकार

मैंणत री धरती रे माथै मिनख पणै रो प्यार

गीत पंखेरू उडतौ जावै, बोलै इमरत बोल

कितरौ मूंघौ कितरौ सूंघौ, इण माटी रो मोल।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : रामनिवास सोनी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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