ले मगन

मुतो नानो अतो नै

पण्यो हूँ।

मारी बाई केती'ती के

मुँ तो तीन वर नो पण्यो हूँ।

मनै तो पेलै काँटै

पण्णाव्यौ है।

नानी'क लाड़ी है

रूपारी लाल

मुँ तो पण्यो हूँ।

मने तो याद नै है

पण कएँ हैं के

मनै पतासं आली नै

बेवाड्यौ तौ।

असल कुर्तु हतु नै

माते सोगां मेल्याता

पण मनै तो अवै

ऊंस थई है।

अवै पण्णावै तो

कएंकं खबर पडै़।

तनै जानै लई जाना

मेटा पान खाना

पण्णी नै उदेपुर जाना

फरना नै हाते हाते रहना।

पण

र्यं काम रावण नै रई ग्यं

नाना पण्णाव्या नै

सब ऊंस रई गई।

एटलै

अजी हुदी मनै तौ

कईं गमस नै है।

भाभी कैती'ती

लाड़ी तो घोड़ा हरकी थई है।

अवे तो लाव

पण हूँ करूं

सोकरा वारा ना कई हैं

कोए वात ने है

मुतो एटलू जाणु कै

मुँ पण्यों हूँ।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : ललित भट्ट 'दादू' ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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