मां!

थूं आई आंगणै

नेह रै छिंयाळै

ठरग्यो म्हारो आंगणो

अर काळजो।

म्हैं

मर- मरगै देख लियो

पण थे जीगै नीं देख्यो

कदैई जी नै

अळ्यो गयो

म्हारो मरणो

अर थारो जीवणो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुरेन्द्र सुंदरम ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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