वकत नैं हातै हातै
मैं भी
कदम थकी
कदम मलावी
हेड़ता हीकी रयो हूँ।
केम कै
मुं तो आन्दरौ हूँ।
वकत स
मारी आंखे हैं।
जे मनै
कीसड़, कांटा, पाणा, खाड़ा
सब थकी बचावी नै
साफ रस्तो भारै
जे रस्तो मने
मारा उद्देश्य हुदी
पुगावी शकै
नै
मानवता नौ
एक नवो पाठ
भणावी शकै।