सुण पेपला!
आरी अर रांपी
खोस लीन्ही
दिल्ली,
खाल खोस लीन्ही
फैक्ट्रियां,
खेत ई
आथूणै बास री
साजसां चढग्या,
जीवण सारू
पूंन चाहीजै
पांणी चाहीजै
भूख री भट्टी नै
रोटी चाहीजै,
थारै साम्हीं
दोय ई मारग
तिल-तिल करने
नरक मांय मरज्या
कै पछे
लेयनै मसाल
अंधेरै मांय बड़ज्या।