म्हारै मन

जीवै अजै

म्हारो गांव मुटळाई।

नानेरो मोटासर..!

पैंडो तीन कोस.!!

दे देंवता गेड़ां माथै गेड़ा

दादेरै-नानेरै बिचाळै

‘‘लौह-लक्कड़ चां चक्कड़,

किण रै घर रो डेरो’’

खेलतां खेलतां

हर सूं बंध्या।

गेड़ा तो आज देयल्यां

पण हर कठै..?

काटल्यां पैंडो

मारग कठै..?

स्रोत
  • पोथी : चाल भतूळिया रेत रमां ,
  • सिरजक : राजूराम बिजारणियां ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण