वखेराई ग्या मणका माला ना

जैम वखेराइ ग्यु मन...

घणू खोटू लागे

वखेराई जयें मणका

जारै वखेराई जाये खोळिया नो विस्वास

मणका आलें हाता

नखे कर चिंता

आवेगा दाड़ो थारो भी

थारो भी कारे’क

वाड़ जो न्हें गणं आंगरियं ना वेड़ा

कैम विचारे मणका।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : शैलेन्द्र उपाध्याय ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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