मनक आज़े मोटाई मरी रियु है

पारकू ताज़ू देखी ने बरी रियु है।

बाप दादं नी वातें तो याद नथी

ज़ूना छैतरा परते तो ज़री रियु है।

कोय घोर मय आवे वैटातु नथी

व्हैम ने धनेरं'ए तो हरी रियु है।

काम कोय पादरू करतु नथी

बस ऊंदं हामं तो करी रियु है।

अली मली ने रेवातु आने नथी

झगडं ना कांदोळ मय गरी रियु है।

चालू तो एटलु थई ग्यु है 'गिरि'

पारके तैलं भजियं तरी रियु है।

स्रोत
  • सिरजक : विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै