मन री मैफल घणी अजूबी,

इण में आवै घणा जणा।

कुण कुण कोई कठे कठै सूं

आता जावै कणा कणा।

अेक खेल छंदा में बोलै

अेक गीत रौ गावणियौ।

अेक कथा कत्थक पर नांचै,

अेक कथा नै बांचणियों।

अेक झूमतौ जूण गमावै,

अेक कहे म्हैं जिया घणा॥

अेक बाग री बात करै है,

अेक बाग सूं परै परै।

अेक थार में थरपै थांबो,

अेक धार सं डरै डरै।

अेक जीमतौ जलम घटावै,

अेक जीवले खाय चणा॥

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण