जीवण

जियां

मकड़ी रो जाळो।

मकड़ी बणावै

आपरो जाळ

फंसेै

उणरै मांय आय'र

मोकळा जीव मतैई।

माया री मकड़ी

गूंथै जीवण रो जाळ

फंस ज्यावै लोभी जीव

इणरै मांय आय'र मतैई

गुंधळीजै

अंतस री आंख्यां

दीसै कोनी पछै की।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : घनश्याम नाथ कच्छावा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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