बंद कमरा मै
आपरो अनोखो रूप निरखतां,
मन मै उछाळ मारण लागी
छोरियां री तरियां
फूलां वाळा रंग-बिरंगा
गाबा पैर कै
लाली-लिपस्टिक लगावण
री इच्छा।
छोरां रा गाबा अर वां री जियां
भारी बोली वाळा
अर्द्ध नारी सरीर मै
छोरियां री कोमल भावना
अर अनोखै परिवर्तन नै
देख होवण लागी कसमसाट।
ताफङ्या तोङण लाग्यो मन
छोरियां रै सागै बतळावण
अर जाणण री आपरी पिछाण।
छोरियां सूं बतळावणों
चोखो लागै,
स्यात मै छोरी ई हूँ!
पण घर अर गांव वाळा तो
मनै छोरो कैवै
स्यात मै छोरो ई हूँ!
पण मेरो सरीर..
मेरी इच्छावां..
स्यात मै छोरी ई हूँ!
ओह्ह!
आखिर कुण हूँ मैं!
के पिछाण है मेरी !
कदै मैं तीसरो मिनख ई तो नई?
जो रैवै आदम्यां री बस्ती सूं
न्यारो-निरवाळो,
हाँ.. हाँ मैं तीसरो मिनख ई हूँ!!
के बता द्यूं सबनै
मेरै जीवण री सच्चाई?
के दुनिया देवैली मनै अधिकार,
आदमी-लुगायां रै बरोबर?
के मनै भी जाणो पङैलो
घर सूं बारै
दम्यां री बस्ती दूर?
ओह्ह कुण हूँ मै ?
मिनख या
घर सूं बारै फेंकण वाळो कूटळो?