मैं कांई करूं?

जद याद ज्यावैं मन-कण अणजाण उणियारा

वीं पोथ्यां नै फाड़ता हुया

जकां में-मैं अमुंमन जिन्दगी रै जोड़ां नै

ढूंढ्या करतो रवतो हो

मैं कांई करूं बीं टेम

जणां म्हारी मजबूरी नै

एक कागद रै ठूंगै में हवा री जग्यां भर’र

उछाळी ज्यावै अर फोड़ दी ज्यावै

एक जोरदार रोळै रै सागै

मैं कांई करूं जणा लाल लाल आंगण आळा

हिंगळू भरीयोड़ी सिंझ्यां आळा टेम तो बीत ज्या'र

आखर में छोड़ ज्या उमसीजयोड़ी ओल्यूं—

जणा मैं अणजान टेम खातर

गूंगो हूं ज्यावूं—

मैं कांई करूं—बोलण री कोई तजबीज जणां मनै नहीं लाधै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त 1980 ,
  • सिरजक : खिज्रो सुधांशु ,
  • संपादक : सत्येन जोशी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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