खेत सूं घर

घर सूं खेत

आवता-जावता

देखता दूर सूं

टोकी री पड़ाल लारै

गुडाळियै बैठ्यै

गढ़ रिमल्याळी नै।

करतो मन

पूगूं

गढ़ दरवाजै

भरल्यूं

आंख्यां में

मोवणां मांडणां।

चुगल्यूं

लाल-लाल भुरभुरी ईंट।

रमतियां ओळावै

जोऊं खूणों-खूणों।

रोक देंवती चाल

दे देंवती दावणो

मन रै काचै पगां

दा‘सा री दकाळ!

लोग कैवता-

इकोतरियै री मरी

खायगी रिमल्याळी

गिटगी गढ़ माणस सैती.!

होयग्यो गांव खाली.!!

अबै जीव रै नांव

उडै कोनी चिड़ी

उण ठौड़.!!

चिड़ी तो डरै

म्हारै गांव कानीं जावण सूं ई।

चाणचक उठणो

होवणा गांव रा गांव खाली

रातो-रात

कमती थोड़ो है

महामरी सूं!

स्रोत
  • पोथी : चाल भतूळिया रेत रमां ,
  • सिरजक : राजूराम बिजारणियां ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण