लुगाई रै मांयनै

आखी उमर जीवै है

एक छोरी!

आधींटै नीं

बुढ़ापै तांई

बा छोरी

उमर रै आंतरै नै डाक‘र

पूठी बालपणै में खींच लेवै

उणनै।

बा बोछरड़ी छोरी

जद जाग जावै...

लुगाई भूल जावै

सासू-जेठाणी रो कायदो!

उघाड़ फेंकै

लाज-सरम रा ओढ़णा

अर पूग जावै

एक बीजी दुनियां में

जिणरो आभो

इत्तो ऊंचो कोनी

कै हींडा री ऊबल्यां सूं

कोनी नावड़ीजै।

उण दुनियां में

बा लुगाई

गूंठो उठा‘र

धाप‘र निरखै

च्यारूंमेर!

खुल‘र हांसै

सातवैं सुर में गावै

मांड-रागणी

भायल्यां भेळी

करै बजारिया

चौका-चूल्हा री चिंता छोड‘र

रमै निसरणी

अर घोटै हथायांI

छोरी रै जागणै रो मतळब

रगदड़ जूण में

चीकणै दिनां री

गळांई हुवै

लुगाई खातर।

स्रोत
  • पोथी : म्हारै पांती री चिंतावां ,
  • सिरजक : डॉ.मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : मनुहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण