टाबरपणै में नानी सिखावती

घट्टी फेरणी गोळ-गोळ

मां सिखावती रोटियां बटणी गोळ-गोळ

अर गोळ बिलोवणौ

म्हारै आजू-आजू परभात सूं लेय’र रात तांई

सै कीं गोळ

जाणै, आं गोळ चीजां में

म्हारी मिनखपणै री, म्हारै आपै री

ओळखाण इज गोळ व्हेयगी,

अर म्हैं व्हैगी अेक मोटियार री सम्पत्ति

उणरै पईसै री सुमिता ओळखाण

उणरै सुख रौ साधन

फगत अेक जिंस

म्हैं खुद सूं नीं, खुद रै धणी सूं इज ओळखीजूं

ज्यूं के धणी सूं ओळखीजै ढांढा अर खेत।

रसोई सूं लेय’र खेत खळियाण तांई

बाड़ी सूं बजार अर कमठै तांई

सगळा काम करती म्हैं

अर फेरूं लाण, बापड़ी निबळी लुगाई कैवीजती

मोटियार रै पग री जूती

के सेजां रो सिणगार

गाळियां खावती अर पग दबावती म्हैं।

कोई नीं जाणै म्हारी पीड़

अेक राती चूनड़ी अर रातै चूड़ै सारू

कितरौ छीज्यौ है म्हारौ रातौ गात।

कोई नीं समझै म्हारी पीड़

नीं म्हारी जलम देवा वाळी मां

नीं धणी मानीजतौ मोटियार

अर नीं म्हैं खुद जाणूं खुद री पीड़

दीयै री बाट ज्यूं बळती म्हैं

जाण’र हरखूं-

के म्हासूं दीपीजै सगळौ घर-संसार।

म्हैं घट्टी फेरती गावूं गीत

अर रोटिया बटती, साग रांधती रचूं कवितावां

धणी रौ बंस बधावती

पालणौ हिंडावती

देखूं आगम रा सुपना

के म्हारा टाबर मोटा होय’र

म्हनै म्हारी ओळखाण देवैला,

सुफळ व्हे जावैला म्हारौ लुगाईपणौ

पण वै आपरै बापरै नांव सूं इज ओळखीजै।

सदियां सूं गोळ व्हेती म्हारी ओळखाण नीं रैवैला गोळ

गोळ जिंसां में घाणी रै बलद ज्यूं

गोळ-गोळ फेरतां फेरतां

थां म्हनै गोळ गींडी मत बणाऔ।

जे म्हें आज मींडी’ज हूं

तौ याद राखौ

के म्हासूं इज बध्यौ है थांरौ मोल दस गुणौ।

गोळ है सूरज अर गोळ है धरती

गोळ है ब्रह्मांड रा सगळा नखत

कांई थां वांसूं बत्ताई कर सकौ?

नीं कर सकौ नीं।

पण म्हैं धरती ज्यूं थांनै झेल सकूं

सूरज ज्यूं जीवण री गरमी देय सकूं

खुद री लुळताई सूं थांनै जीत सकूं

खुद री कंवळाई सूं थांनै हराय सकूं।

म्हारै हेत रै इमरत सूं थांनै मरतां नै जिवाय सकूं म्हैं।

म्हैं, हां म्हैं, बापड़ी, लाण, निबळी लुगाई।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : सावित्री डागा ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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