रोसनी का रूँख तो

लाग रैया छै

पैली सूं

देस मै।

आपां करां

वाँकी देखभाळ

देखाँ-कस्याँ पड़ै छै

काळ।

क्हाँ टक पावै छै

अंध्यारान का पाँव।

जठी जावला-उठी

उजाळो पावैला।

रोसनी का रूँख तो

लगा सकै छै

रिसी मुनी ई।

मूल्यान की रोसनी

होवै छै सबसूँ

स्वावणी।

स्रोत
  • पोथी : रोसनी का रूँख ,
  • सिरजक : प्रेम जैन ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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