हर दिन

उदासी रौ अेक पानो

रात

आगलै पाठ री त्यारी रौ

अेक पड़ाव!

पैली तारीख

टाबरां रा पेट सहलावण

भायलां रै सांमी

हाथ फैलावण

खुद रै मांय बैंवती नदी

रोकण

खुद री आँख्या में

सुरमो लगावण

अेक भुलावो

अेक ठैराव।

हर नूंवो बरस

भायलां नै कार्ड भेजण

बधाई दैवण

फटी कालर उथळावण

लोगां सांम्ही शेखी बघारण

लुगाई नै भुलावा देवण

कांच रै पाछी चमचमावती

साड़्यां दिखावण

आपरी विद्वता रौ सिक्को

जमावण

कैयां नै आंख्यां दिखा 'र

डरा'र

खुद रै टाबरां सांम्ही

आँख्यां झुका'र बेसरमी सूं।

जळती आग नै देख 'र

हथेळी सूं आँख्यां ढांप ’र

मुद्दत सूं फाटी

नूंई जेब्यां

बणावण रौ

अेक पर्व है।

स्रोत
  • पोथी : थार बोलै ,
  • सिरजक : भंवर भादानी ,
  • प्रकाशक : स्वस्ति साहित्य सदन
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